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Motijheel Special
जरा सामने तो
आओ
इन अँखियों
ने ज़िद्द पकड़ी हैं
तुम्हे खुद
में बसा लेने की
पर तुम मुझे
नजर
क्यों नहीं आ
रही:?
हो गई हो
इतने करीब?
या चली गयी
हो कोसो दूर ?
वो कह गए
की
चलती का नाम
जिंदगी है
पर मेरी
जिंदगी क्यों थम सी गयी हैं
क्या ये
तुम्हारी नादानी है ?
कैसे समझाऊ
खुद को
तू ही
बता
आलम ये
हैं
कि माँ की
लोरियों में
तुम्हारी
मिठास महसूस
होती
है
जब हवाएँ मन
चीर
निकलती
हैं
तब तुम्हारे
बदहवासी से
उड़ती ज़ुल्फें
याद आतीं हैं
बच्चों की
किलकारियों में
तुम्हारी
मासूमियत नजर आती है
गुलाब पे
ठहरी भोर
की ओस
तुम्हारी नाजुक
होठो पे ठहरी
मुस्कान सी
नजर आती
है
उढावुल के
फूल की रंगत में
तुम्हारी लाल
आँचल की छाव नजर आती है
पलके झपकी
नहीं की
वो झड़
गए
और वो यु ही
कह गए
कि चलती का
नाम जिंदगी है.
फिर ये ठहराव
कैसे
भर्ती है
मुझमे भर्ती हैं??
क्या ये
तुम्हारी नादानी है??
कभी दिल के
झरोखे पे
बस इठला के
ही चली जाओ
एक भोली
तितली सी न आना
चाहो तो कोई
बात नहीं
जी लूंगा
तेरे बगैर
पर क्या
जिंदगी मुझे
तुम्हारे
बगैर कबूल करेगी ??
लौट
आओ
ये परिंदा
बेसब्र है
क्योंकि ये
तुम्हारी नादानी है .
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